UP नगर निकाय चुनाव में OBC आरक्षण पर कोर्ट ने सुनाया फैंसला, UP सरकार को लगा बड़ा झटका
इस मामले में कोर्ट ने साल 2017 के ओबीसी रैपिड सर्वे को भी नकार दिया है। न्यायमूर्ति सौरभ लवानिया और न्यायमूर्ति देवेंद्र कुमार उपाध्याय की पीठ ने इस मामले में दाखिल की गई 93 याचिकाओं पर एक साथ फैसला पारित किया है। ऐसे में अब उत्तर प्रदेश सरकार सुप्रीम कोर्ट का रुख कर सकती है। हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच की ओर से निकाय चुनाव में किए गए ओबीसी आरक्षण को रद्द किए जाने के बाद ओबीसी उम्मीदवारों के लिए रिज़र्व की गई सभी सीटें अब जनरल कैटगरी की मानी जाएंगी।
अपना फैसला सुनाते हुए अदालत ने प्रदेश में तत्कालीन निकाय चुनाव कराने के भी निर्देश दिए हैं। इस मामले में कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि ओबीसी को आरक्षण देने के लिए एक आयोग बनाया जाना चाहिए। आपको बता दें कि इसी मामले में पिछली सुनवाई 24 दिसंबर को हुई थी। सुनवाई के बाद याचिकाकर्ता के वकील ने बताया था कि यूपी सरकार ने अपने हलफनामे में अपने ऐक्शन को डिफेंड किया कि जो हमने नोटिफिकेशन जारी किया है वो बिल्कुल सही तरीके से जारी किया है लेकिन कोर्ट उनसे बहुत ज्यादा संतुष्ट नहीं था।
कोर्ट का कहना था कि आपने जो ये एक्सरसाइज की है उसका कोई डेटा नहीं है। बिना डेटा के यह एक्सरसाइज पूरी कैसे कर ली गई है? कोर्ट उनसे डेटा मांग रही थी, लेकिन सरकार ने कोर्ट के समक्ष कोई डेटा पेश नहीं किया। इलाहाबाद हाइकोर्ट की लखनऊ बेंच ने 70 पेजों का फैसला सुनाते हुए यूपी सरकार की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। ऐसे में अब उत्तर प्रदेश की योगी सरकार के पास सुप्रीम कोर्ट जाने का विकल्प खुला हुआ है। इस मामले में कोर्ट के फैसले की जानकारी देते हुए वकील ने बताया इस सुनवाई के दौरान पिछले चुनाव का हवाला दिया गया था।
साथ ही कहा गया कि 2014 और 2017 के चुनाव में भी बहुत सारे नियमों का उल्लंघन हुआ था। इसको लेकर अदालत में बहुत से मामले भी आए थे। उन्होंने कहा कि उसी डेटा के आधार पर यह चुनाव भी करवाने की कोशिश की जा रही थी। इसी वजह से कोर्ट में इसे चुनौती दी गई थी। इस मामले में अब जबकि कोर्ट की ओर से फैसला आ चुका है तो अब उम्मीद जताई जाने लगी है कि उत्तर प्रदेश में जल्दी ही निकाय चुनाव की तारीखें घोषित हो सकती है।
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